चंद्र ग्रहण का धार्मिक पक्ष
चंद्र ग्रहण भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, चंद्र ग्रहण एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है जिसे अक्सर शुभ और अशुभ दोनों दृष्टिकोणों से देखा जाता है। यह न केवल खगोलशास्त्र से संबंधित है, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के साथ भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इस लेख में चंद्र ग्रहण के धार्मिक पक्ष, उससे जुड़ी मान्यताओं, अनुष्ठानों और सावधानियों को लगभग 500 शब्दों में समझाया गया है।
धार्मिक मान्यताएँ
हिंदू पौराणिक कथाओं में चंद्र ग्रहण का संबंध समुद्र मंथन की कथा से जोड़ा जाता है। कथा के अनुसार, जब देवता और असुर मिलकर अमृत के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तब राहु नामक असुर ने छल से अमृतपान करने की कोशिश की। सूर्य और चंद्रमा ने इसे देख लिया और भगवान विष्णु को सूचित किया। क्रोधित होकर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन चूंकि राहु ने अमृत पी लिया था, वह अमर हो गया। तब से राहु और केतु (राहु का धड़) को सूर्य और चंद्रमा के शत्रु माना जाता है। माना जाता है कि चंद्र ग्रहण तब होता है जब राहु चंद्रमा को निगलने की कोशिश करता है, जिसके कारण चंद्रमा अंधकारमय हो जाता है। यही कारण है कि ग्रहण को धार्मिक दृष्टिकोण से अशुभ माना जाता है।
चंद्र ग्रहण के दौरान धार्मिक नियम और सावधानियाँ
हिंदू धर्म में चंद्र ग्रहण के दौरान कई नियम और सावधानियाँ बरती जाती हैं, जिन्हें सूतक काल के रूप में जाना जाता है। सूतक काल ग्रहण शुरू होने से कुछ घंटे पहले शुरू होता है और ग्रहण समाप्त होने के बाद खत्म होता है। इस दौरान निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाता है:
भोजन और पेय पर प्रतिबंध: ग्रहण के दौरान और सूतक काल में भोजन करना या पकाना वर्जित माना जाता है। मान्यता है कि ग्रहण के समय नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है, जो भोजन को दूषित कर सकता है। हालांकि, गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को कुछ छूट दी जा सकती है।
राजेन्द्र नाथ तिवारी