बस्ती
जनपद बस्ती में जे०ई०/५०ई०एस० रोग की रोकथाम हेतु विशेष संचारी रोग नियंत्रण पखवाड़ा के अन्तर्गत घुहा एवं छबूंदर नियंत्रण कार्यकग चलाया जायेगा जो दिनांक- (01.07.2025 से 31.07.2025) तक चलेगा। अभियान
चूहा नियंत्रण का साप्ताहिक कार्यकम-कृषको द्वारा खेती/फसल क्षेत्रों में सामाहिक कार्यक्रम चलात पहले पह
नियत्रंण किया जा सकता है।
चूहा नियंत्रण अभियान के अंन्तर्गत तिथियार किये जाने वाले कार्य-
प्रथम दिन क्षेत्र भ्रमण एंव कार्यस्थल की पहचान करना।
दूसरा दिन-खेत/क्षेत्र का निरीक्षण एव विलो को बन्द करते हुये चिन्हित कर झण्डे लगाये।
तीसरा दिन-खेत/क्षेत्र का निरीक्षण कर जो बिल बन्द हो वहा झण्डे हटा दे, जहा पर बिल खुले पाये वहां पर झण्डा लगे रहने दें। खुले बिल में एक भाग सरसों का तेल एंव 48 भाग भुना चना/ गेंहू / चावल आदि से बने चारे को
विना जहर मिलाये बिल में रखे।
चौथा दिन बिलों का निरीक्षण कर बिना जहर का चारा पुन रखे।
पांचवा दिन-जिंक फारफाइंड 80 प्रतिशत की 01 ग्राम मात्रा को 01 ग्राम सरसों तेल व 48 ग्राम भुना चना/गेहू
आदि से बने चारे को बिल में रखें।
छठवां दिन-बिलो का निरीक्षण करें तथा मरे चूहो को एकत्र कर जमीन में गाड दे।
सातवा दिन बिलों को पुनः बन्द कर दे।
अगले दिन यदि बिल खुले पायें जाए तो कार्यकम पुन अपनाये।
चूहा नियंत्रण की अन्य विधाएं:-
चूहे मुख्यतः दो प्रकार के होते है-घरेलू एवं खेत / क्षेत्र के चूहें। घरेलू चूहा घर में पाया जाता है जिसे मूशक कहा जाता है। खेत/क्षेत्र के चूहों में फील्ड रेट साप्ट फील्ड रैट एवं फील्ड माउस प्रमुख है. भूरा चूहा खेत/क्षेत्र व घर में दोनों में तथा जंगली चूहा जंगल रेगिस्तान, झाडियों में पाया जाता है।
1. चूहे की संख्या नियंत्रित करने के लिये अन्न भण्डारण पक्का कंकीट तथा धातु से बनी बखारी/पात्रों में करना चाहिए ताकि उनको भोज्य पदार्थ सुगमता से उपलब्ध ना हो।
2. चूहे अपना बिल झाडियों, मेंडो, कूड़ों आदि में स्थायी रूप से बनाते है। खेता / क्षेत्रों का समय समय पर निरिक्षण एवं साफ-सफाई करके उनकी संख्या नियंत्रित कर सकतें है।
3. चूहों के प्राकृतिक शत्रुओं-बिल्ली, सांप, उल्लू बाज, चमगादण आदि द्वारा चूहों को भोजन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इनकों संरक्षण देने से चूहों की संख्या नियत्रित हो सकती है।
4. एल्यूमिनियम फास्फाइंड दवा की 3-4 ग्राम मात्रा प्रति जिन्दा बिल में डालकर बिल बन्द कर देने से उससे
निकलने वाली गैस से चूहे गर जाते है।
चूहा नियंत्रण अभियान का कियान्वयनः-
1. कार्यक्रम के कियान्वयन हेतु कृषि विभान के समस्त कर्मचाहरयो-ए०टी००एम०, बी०टी०एम०, प्रविधिक सहायक
आदि के द्वारा ग्राम पंचायत स्तर पर गावी में जा कर गोष्ठी, चौपाल अथवा कृषको से व्यत्तिगत सम्र्पक कर उन्हें जागरुक किया जाएगा।
2. चूहा नियंत्रण कार्यक्रम अभियान के रूप में चलाया जायेगा जिसमें स्वंय सेवी संगठनों स्वंय सहायता समूहों किसान क्लबों, कृषि तकनीकी प्रबन्ध अभिकरण (आत्मा), बीज / उर्वरक / रसायन विकेता इफकों सहकारिता का सहयोग प्राप्त किया जायेगा ।
3. दिनांक-01.07.2025 से 31.07.2025 तक यो मध्य चूहा नियंत्रणं के विषय में परिचर्चा के माध्यम से जनपद / तहसील/ब्लाक, ग्राम पंचायत स्तर पर चूहा नियंत्रण अपनाने के लिये जनं सामान्य को प्रोत्साहित
किया जायेगा। 4.
चूहा नियंत्रण के संम्बन्ध में स्थानीय समाचार पत्रों मीडिया आदि माध्यमों से भी जानकारी जनसामान्य तक पहुंचायी जायेगी।
5 स्थानीय ग्रामवासियों की सहभागिता से चूहा नियंत्रण से संम्बन्धित नारों की वाल राईटिंग कराकर भी लोगो को जागरूक किया जायेगा।
6 इस अभियान के क्रियान्वयन में जनसामान्य का सहयोग प्राप्त करतें हुए जनसहभागित्ता सुनिश्चित करने पर विशेष बल दिया जायेगा।
मच्छर प्रतिरोधी पौधेः-
मच्छर विभिन्न प्रकार के रागो-ए०ई०एस०/ जे०ई०. डेंगू, मलेरिया इत्यादि के वेक्टर (वाहक) के रूप में कार्य करते है। मच्छरों को कुछ विशेष पौधों को लगाकर नियंत्रण किया जा सकता है जैरो गेंदा, गुलदाउदी, सिट्रोनेला, रोज मेरी तुलची लेवेंन्डर, जिउनेयम। ये पौधे तीव्र गंन्ध वाले एसेन्शियल आयल अवमुक्त करतें है जिनसे मच्छर दूर भाग जाते है इस प्रकार इन फूल पौधों को घरों के आस पास लगाने से वातावरण तो सुगन्धित होता ही है साथ ही खतरनाक मच्छरों से भी बचाव होता है। इनमें से कुछ प्रजातियों द्वारा तो ऐसे रासायनिक तत्व मुक्त किये जातें है जो मच्छरों की प्रजनन क्षमता ही समाप्त कर देतें हैं। इस प्रकार इन पौधो के रॉपड द्वारा भी मच्छरों को दूर कर जे०ई०/ए०ई०एस रोग से बचाव किया जा सकता है।
(रतन शंकर ओझा)