भगवान नारायण ही जगत के पालनहार हैं भक्तगण अपने आराध्य भगवान नारायण की प्रसन्न करने हेतु अपने प्रिय खाद्य पदार्थों का परित्याग करते है, समय-समय पर यथाशक्ति दान करते रहते हैं एवं परिनिन्दा एवं परिचर्या से दूर रहते हुए अपने सांसरिक कार्यों को संपन्न करते हैं जो भक्त चातुर्मास का नियम का पालन करते हैं उन्हें भगवान नारायण
: तत्काल बिना मांगे मनवांछित फल प्रदान करते हैं
देवशयनी (पद्मनाभा) एकादशी है,ऐसी मान्यता है कि आषाढ शुक्ल एकादशी अर्थात देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु सो जाते हैं। मन में सहज ही प्रश्न उठता है कि भगवान भी सोते है क्या? यदि परमात्मा ही सो जाए तो इस सृष्टि का संचालन कैसे होगा? इसका जवाब श्रीमद्भगवद्गीता में मिलता है। गीता के दूसरे अध्याय के 69 वें श्लोक में आया है या “निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी” अर्थ- संपूर्ण मनुष्यों को जो रात है, उसमें संयमी मनुष्य जागता है। यहां देवशयन का अर्थ भगवान विष्णु के #योगनिद्रा में रहने से है, योग निद्रा का अर्थ है अचेतन में चेतना के प्रवाह या ऐसा कहें कि निद्रा और जाग्रत अवस्था के मध्य की अवस्था। आज से चातुर्यमास प्रारम्भ हो गया यानि चार महीने का आध्यात्मिक '#लाकडाऊन' चार महीने सभी शुभकार्य वर्जित रहेंगे।
एक जुलाई से चातुर्मास शुरू होगा, 25 नवंबर तक देवशयन करेंगे। 26 नवंबर को इसकी समाप्ति होगी
चातुर्मास इस बार पांच महीने का पड़ रहा है। हिंदू धर्म में एक जुलाई से चातुर्मास शुरू होगा, 25 नवंबर तक देवशयन करेंगे। 26 नवंबर को इसकी समाप्ति होगी। 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक क्वांर के महीने में अधिकमास भी पड़ रहा है। इसके कारण चातुर्मास के दिनों में वृद्धि हो गई है। 4 महीने के स्थान पर 4 महीने 25 दिन का चतुर्मास होगा। आचार्य विपुल तिपाठी ने बताया कि देव पंचांग के अनुसार हर 32 मास, 16 दिन और 4 घंटे बीतने पर अधिकमास पड़ता है। यह संयोग 32 माह बाद बना है। इससे पहले वर्ष 2017 में अधिकमास पड़ा था। जैन धर्म में 4 व 5 जुलाई से चातर्मास शुरू होगा। कोरोना संकट के बीच इस बार अभी जो संकेत मिले हैं, उसके अनुसार शहर के चौक जैन धर्मशाला में ही चातुर्मास की तैयारियां चल रही हैं।
एक ही स्थान पर होगा चातुर्मास
जैन समाज में चातुर्मास का विशेष महत्व है। इस अवधि में समाज के संत, मुनि, साध्वी एक निश्चित स्थान पर विराजमान होकर चातुर्मास करते हैं। पिछले वर्ष राजधानी में तीन जैन मंदिर चौक स्थित जैन धर्मशाला, अशोका गार्डन व शंकराचार्य नगर जैन मंदिर में जैन मुनियों, आचार्यों ने चातुर्मास की साधना की थी।
ध्यान, साधना, दान का विशेष महत्व
हिंदू धर्म में व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के चार महीने को चातुर्मास कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए यह माह महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। चातुर्मास चार महीने की अवधि का होता है। जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस बार अधिक मास भी पड़ रहा है, जिसमें दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस मास में गुड़, सरसों, मालपुआ और स्वर्ण के साथ दान करने से पृथ्वी दान का फल प्राप्त होता है।
अधिकमास में दान करना श्रेष्ठ फलदायी
पं सुभाषचंद्र तिपाठी ने बताया कि अधिकमास में तिल, गेहूं, सोने का दान तथा संध्योपासना कर्म व पर्व का होम ग्रहण का जप, अग्निहोत्र देवता पूजन, अतिथि पूजन अधिकमास में ग्राहृय है। श्रीमद् भागवत कथा मोक्षदायी है। इसके अलावा अधिमास में तीर्थयात्रा, देवप्रतिष्ठा, तालाब, बगीचा, यज्ञोपवीत आदि कर्म निष्क्रिय हो जाते हैं। राज्याभिषेक, अन्नप्राशन, गृह आरंभ, गृहप्रवेश इत्यादि कर्म नहीं करना चाहिए।
व्रत, भक्ति और शुभ कर्म के 4 महीने को हिन्दू धर्म में 'चातुर्मास' कहा गया है। ध्यान और साधना करने वाले लोगों के लिए ये माह महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान शारीरिक और मानसिक स्थिति तो सही होती ही है, साथ ही वातावरण भी अच्छा रहता है। चातुर्मास 4 महीने की अवधि है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है।
उक्त 4 माह को व्रतों का माह इसलिए कहा गया है कि उक्त 4 माह में जहां हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। उक्त 4 माह में से प्रथम माह तो सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस संपूर्ण माह व्यक्ति को व्रत का पालन करना चाहिए।
ऐसा नहीं कि सिर्फ सोमवार को ही उपवास किया और बाकी वार खूब खाया। उपवास में भी ऐसे नहीं कि साबूदाने की खिचड़ी खा ली और खूब मजे से दिन बिता लिया। शास्त्रों में जो लिखा है उसी का पालन करना चाहिए। इस संपूर्ण माह फलाहार ही किया जाता है या फिर सिर्फ जल पीकर ही समय गुजारना होता है।
उक्त 4 माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। चातुर्मास के प्रारंभ को 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है और अंत को 'देवोत्थान एकादशी'।
4 माह यह चीजें न खाएं - इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है।
ये नियम पालें : इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। वैसे साधुओं के नियम कड़े होते हैं। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।
वर्जित कार्य : उक्त 4 माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।
कैलंडर में आये यह चार महीने अर्ध आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद,
चौमासा या चतुर्मास का अलग अलग धर्मों में महत्व
चौमासा का अलग अलग धर्म में अलग महत्व है. यहाँ कुछ धर्म के अनुसार इसका महत्व दर्शाया जा रहा है :
जैन धर्म में चौमासा का महत्व : जैन धर्म में चौमासे का बहुत अधिक महत्व होता हैं. वे सभी पुरे महीने मंदिर जाकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं एवं सत्संग में भाग लेते हैं. घर के छोटे बड़े लोग जैन मंदिर परिसर में एकत्र होकर ना ना प्रकार के धार्मिक कार्य करते हैं. गुरुवरों एवं आचार्यों द्वारा सत्संग किये जाते हैं एवं मनुष्यों को सद्मार्ग दिखाया जाता हैं. इस तरह इसका जैन धर्म में बहुत महत्व है.
बौद्ध धर्म में चौमासा का महत्व : गौतम बुद्ध राजगीर के राजा बिम्बिसार के शाही उद्यान में रहे, उस समय चौमासा की अवधि थी. कहा जाता है साधुओं का बरसात के मौसम में इस स्थान पर रहने का एक कारण यह भी था कि उष्णकटिबंधीय जलवायु में बड़ी संख्या में कीट उत्पन्न होते हैं जो यात्रा करने वाले भिक्षुकों द्वारा कुचल जाते हैं. इस तरह से इसका बौद्ध धर्म में भी महत्व अधिक है.
हिन्दू धर्म में चौमासा का महत्व : हिन्दू धर्म के सभी बड़े त्यौहार इन्ही चौमासा के भीतर आते हैं. सभी अपनी मान्यतानुसार इन त्यौहारों को मनाते हैं एवं धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं.
चौमासा या चातुर्मास के माह एवं त्यौहार
चौमासा या चतुर्मास के अंतर्गत निम्न माह शामिल हैं :
आषाढ़ :
सबसे पहला महीना आषाढ़ का होता है, जो शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से शुरू होता हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन से भगवान् विष्णु सोने जाते हैं. आषाढ़ के 15 दिन चौमास के अंतर्गत आते हैं. इसलिए ऐसा भी कहा जाता है कि चौमास अर्ध आषाढ़ माह से शुरू होता है. इस माह में गुरु एवं व्यास पूर्णिमा का त्यौहार भी मनाया जाता है, जिसमें गुरुओं के स्थान पर धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं. कई जगहों पर मेला सजता हैं. गुरु पूर्णिमा खासतौर पर शिरडी वाले साईं बाबा, सत्य साईं बाबा, गजानन महाराज, सिंगाजी, धुनी वाले दादा एवं वे सभी स्थान जो गुरु के माने जाते हैं वहां बहुत बड़े रूप में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं.
श्रावण :
दूसरा महीना श्रावण का होता है, यह महीना बहुत ही पावन महीना होता है, इसमें भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती हैं. इस माह में कई बड़े त्यौहार मनाये जाते हैं जिनमें रक्षाबंधन, नाग पंचमी, हरियाली तीज एवं अमावस्या, श्रावण सोमवार आदि विशेष रूप से शामिल हैं. रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहनों का त्यौहार होता है. बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं. वहीं नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा की जाती है. हरियाली तीज में सुहागन औरतें भगवान् शिव एवं देवी पार्वती की पूजा करती है एवं व्रत भी रखती है. इस माह में श्रावण सोमवार का महत्व बहुत अधिक है. इस माह में वातावरण बहुत ही हराभरा रहता है.
भाद्रपद :
तीसरा महीना भादों अर्थात भाद्रपद का होता हैं. इसमें भी कई बड़े एवं महत्वपूर्ण त्यौहार मनायें जाते हैं जिनमें कजरी तीज, हर छठ, जन्माष्टमी, गोगा नवमी, जाया अजया एकदशी, हरतालिका तीज, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, डोल ग्यारस, अन्नत चतुर्दशी, पितृ श्राद्ध आदि शामिल हैं. हर त्यौहार का हिन्दू धर्म में अपना एक अलग महत्व होता है, और लोग इसे बड़े चौ से मनाते हैं. इस तरह यह माह भी हिन्दू रीती रिवाजों से भरा पूरा रहता हैं.
आश्विन माह :
चौथा महीना आश्विन का होता हैं. अश्विन माह में पितृ मोक्ष अमावस्या, नव दुर्गा व्रत, दशहरा एवं शरद पूर्णिमा जैसे महत्वपूर्ण एवं बड़े त्यौहार आते हैं. इस माह को कुंवार का महीना भी कहा जाता हैं. नव दुर्गा में लोग 9 दिनों का व्रत रखते हैं इसके बाद दसवें दिन दशहरा का त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं.
कार्तिक माह :
यह चातुर्मास का अंतिम महीना होता है, जिसके 15 दिन चौमास में शामिल होते हैं. इस महीने में दीपावली के पांच दिन, गोपा अष्टमी, आंवला नवमी, ग्यारस खोपड़ी/ प्रमोदिनी ग्यारस अथवा देव उठनी ग्यारस जैसे त्यौहार आते हैं. इस माह में लोग अपने घर में साफ सफाई करते हैं, क्योकि इस माह में आने वाले दीपावली के त्यौहार का हमारे भारत देश में बहुत अधिक महत्व है. इसे लोग बहुत ही धूम धाम से मनाते हैं. कार्तिक माह महत्व व्रत कथा एवम पूजा विधि जानने के लिए पढ़े.
पुरुषोत्तम मास / अधिक मास :
इस चौमास के अलावा अधिकमास का भी बहुत महत्व हैं इसे पुरुषोतम मास कहा जाता हैं.
यह मास तीन साल में एक बार आता हैं, एवं गणना में अनुसार वह किसी भी महीने में आ जाता हैं. इस अधिक मास का भी उतना ही महत्व होता हैं जितना की चौमास का. जब यह अधिक मास भाद्रपद में आता है, जो कि कई वर्षों में होता हैं तब उसका महत्व और अधिक बढ़ जाता हैं.
इस तरह चौमासा के ये सभी माह त्योहारों से भरे होते हैं. चौमासा के समाप्त होते ही धार्मिक कार्य जैसे शादी, मुंडन इत्यादि का कार्य शुरू हो जाता हैं. देव उठनी ग्यारस से ही विवाह कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. कहा जाता है कि इस दिन देवी तुलसी का विवाह होता है. कुछ लोग इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं.
चौमासा या चातुर्मास में अपनाये जाने वाले अन्य नियम
चौमासा के कई नियम होते हैं जो सभी अपनी मान्यतानुसार निभाते हैं. सबकी अपनी श्रद्धा होती हैं. आगे कुछ नियम आपके सामने लिखे गये हैं.
क्र नियम विवरण
1 स्नान चौमास के दिनों में महिलायें सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान करती हैं साथ ही पूजा कर मंदिर जाती हैं .खासतौर पर श्रावण एवं कार्तिक का महिना. कार्तिक में कृष्ण जी एवं तुलसी जी की पूजा की जाती हैं.
2 उपवास/व्रत कई लोग पुरे चार महीने एक वक्त भोजन करते हैं. एवं रात्रि में फलहार किया जाता हैं.
3 प्याज, लहसन, बैंगन, मसूर जैसे भोज्य पदार्थ से परहेज पुरे चार महीने कई लोग ये सभी पदार्थ अपने भोजन में उपयोग नहीं करते. खासतौर पर श्रावण एवं कार्तिक माह में.
4 पैर में चप्पल नहीं पहनते कई लोग नव दुर्गा के समय चप्पल नहीं पहनते हैं.
5 बाल एवं दाड़ी नहीं कटवाते श्रावण एवं नव दुर्गा में कई पुरुष अपने बाल एवं दाड़ी नहीं कटवाते.
6 धार्मिक कर्म कांड पुरे चौमासा गीता पाठ, सुंदर कांड, भजन एवं रामायण पाठ सभी अपनी श्रद्धानुसार करते हैं. इसके अलावा इस समय कई दान पूण्य एवं तीर्थयात्रा भी की जाती हैं.