कहने वाले कहते रहे,
निकम्मे हैं सरकारी!
आज इस विकट दौर में,
काम आए सरकारी!
कोई ना आता पास मरीज के,
दवा पिलाते सरकारी!
कोई न इनको हाथ लगाते,
मल मूत्र उठाते सरकारी!
चोरहो पर चौबीसों घंटे,
पाठ पढाते सरकारी!
स्कूलों में बारातियों सी,
खातिर करते सरकारी!
छोड़ परिवार डटे हुए हैं,
अपने काम पर सरकारी!
या फिर बच्चे के संग,
ड्यूटी पर मां सरकारी!
घर रहने की विनती करते,
गाना गा कर सरकारी!
घर घर जो सर्वे करते,
वो बन्दे सारे सरकारी!
अपनी कमाई का हिस्सा दे,
बिना नाम के सरकारी!
धन कम पड़े खज़ाने में तो,
DA कुर्बान करे सरकारी!
जोखिम सर पर लिए बैठे,
आज सारे सरकरी!!
बस लिख दिया आज
आज इस विकट दौर में, काम आए सरकारी-- अपूर्व शुक्ला सामाजिक कार्यकर्ता
May 11, 2020
Tags