लबे दरिया और मझधार में कोई नहीं जाता।
मगर ये इश्क जादे हैं के उसी में कूद जाते हैं।।१
जहां में चांद अच्छा है और चांदनी कमसिन।
अगरचे सामने हो तुम तो ये भरम टूट जाते हैं।।२
हर साख पर गुल हैं और गुलों में पराग भी।
ता हम आपके खुशबू से ये पीछे छूट जाते हैं।।३
तुम्हारे जुस्तजू का फिक्र और ज़िक्र भी तो है।
लिखता हूं तो अश्कों से कागज़ भीग जाते हैं।।४
बस्ल - ए - मुराद लेकर चलते रहे हैं हम।
मिल भी गये गर रास्ते तो मंजिल छूट जाते हैं।।५
जिंदगी का फलसफा कुछ यूं रहा है कृष्ण।
मिल भी गया सब कुछ तो अपने छूट जाते हैं।।६
बाल कृष्ण मिश्र कृष्ण
०७.०६.२०२५
भीलवाड़ा राजस्थान।